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मै था बस देख रहा था


मै था बस देख रहा था

मै था बस देख रहा था
दुःख को अपने घेर रहा था
निकाल अपनी खुद की बत्तीसी
आँखों पे अपने ऐनक ऐंठ रहा था
मै था बस देख रहा था

सर्कस सा मजमा लगा हुआ था
हर एक एक को ठेल रहा था
अबै तू ठहर …२ बोल रहा था
दर्शक बन बस मै तमाशा देख रहा था
मै था बस देख रहा था

कोई मरे कटे पिटे हम को क्या
जीवन है उसका खुद लड़े हम को क्या
ये हमारी पॉलिसी ये हमारा जीना है
दूसरों के फटे में टांग अड़ना क्यों
मै था बस देख रहा था

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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