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कुछ कह जाता है



कुछ कह जाता है

कुछ ..... रह जाता है
वो ही याद .. आता है
ऐसे किया होता तो
वैसा हुआ होता
ना जाने क्यों बार बार ......२
कुछ कह जाता है
कुछ ..... रह जाता है
वो ही याद .. आता है

नाकामी मेरी
तू क्यों मुझे इतना तड़पती है
गुजर जाता है ये वक्त मगर
तू पीछे पीछे क्यों आती है
अश्कों के ये बहती लंबी धारा ......२
कुछ कह जाती है
कुछ ..... रह जाता है
वो ही याद .. आता है

ना पता चलता उसे उस पल
उसको अपने में होश कहां रहता है
जोश से भरा वो परिंदा
जब आसमानों लड़ नाकाम होता है
बस बाद पछतावा भरा मन
कुछ कह जाता है ......२
कुछ ..... रह जाता है
वो ही याद .. आता है

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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