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भीड़ है



भीड़ है

इतनी भीड़ है
मै फिर भी ,मै फिर भी हूँ अकेला
इतनी भीड़ है

खोजों खुद को ओ .....
कैसे खोजों मै
भाग रहा हूँ जब मै खुद से अकेला
इतनी भीड़ है

टुकड़ों टुकड़ों में
मै बांटा हुआ हूँ
तीनों पहर से जब यूँ लगा हुआ हूँ
इतनी भीड़ है

क्या सोचों मै
क्या यहं पाऊँ
भीड़ हूँ एक दिन इस भीड़ से छट मै जाऊं
इतनी भीड़ है ,भीड़ है ,भीड़ है

बालकृष्ण डी ध्यानी

देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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