बहुत कुछ था लिखने मगर
बहुत कुछ था लिखने मगर
हम से ना कुछ वो सारा लिखा गया
अब तो ही जान ले और समझ ले
क्या छूटा हम से जो वो लिखा ना गया
हर शख्स तुझ को छोड़ कर
ना जाने आज वो कहाँ चला
हर पन्ने पर उभरा चेहरा तेरा
आता नजर जब से बिछड़े हैं हम
वो गाँव और वो खेत भी
करते हैं बाते तेरी वो अब भी अक्सर
फिर तेरा आना हो ना हो पर मै कैसे कर दूँ
तेरे बिन पूरी ये अधूरी गजल
बहुत कुछ था लिखने मगर
हम से ना कुछ वो सारा लिखा गया
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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