दो थपड़
दो थपड़ पड़े गाल पर
मुझे और मै रो पड़ा
अपने से मै
खुद ही अब बोल पड़ा
क्यों पड़े होंगे
इस गाल पर क्यों जड़े होंगे
क्या गलती थी मेरी
क्यों इसने इसे सहे होंगे
लाल लाल हो गये हैं
अब तो ये गुस्से से अपने
कैसे लग रहे होंगे
अब वो हर कोने हर हिस्से
पानी पानी और आत्मग्लानि
फिजूल की ये उनकी मेहरबानी
नक़्शे लग रहे है वो पकिस्तानी
बम की छोड़ गये वो निशानी
फिर भी ना पचा पाया
क्या दोष था मुझ में वो थपड़ भी
ना मुझे सुधार पाया
बरसते रहते इसी तरह इस गाल पे
और मै ढीठ हो गया
दो थपड़ ……
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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