ढूंढ लेने दे तुझे तू आज मुझे
ढूंढ लेने दे तुझे तू आज मुझे
तेरे छोड़े कदमों के उभरे निशां अब पूछे मुझे
यंहा पर सब बिखरा पड़ा हुआ है अब
तेरे यादों के सहारे थोड़ा और अब जी लेने दे मुझे
तेरा एक एक सामान मैने संभल रखा है यंहा
थोड़ी टूट सी गयी है वो उसे अब जोड़ लेने दे मुझे
अक्सर मै पहाड़ों में बैठा कर तुझे निहारा करता हूँ
ना जाने क्यों कर लहरों की अनुभूति होती है मुझे
ढूंढ लेने दे तुझे तू आज मुझे
तेरे छोड़े कदमों के उभरे निशां अब पूछे मुझे
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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