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म्यारा अपरा





म्यारा अपरा

म्यारा अपरा
कया मिथे अब भी पछना दील
म्यारा मन को ये टपकरा
आच मिथे ऊ किलै टपकराण छन

मि भी बिसरी गयुं
औ भी कया मिथे भूली गे हुली
ये संकोच मा
मि भी कभी परती की नि आई

रैग्युं दोई मन को खोज मा
एक भी खोज मि सुफल नि कै पाई
ऐ रे मेरु जन्मा तू इनि सुधि ग्याई
मिल कया पाई यख बस मिल ख्वाई

अखैर बगत मा तू खूब मिथे याद आई
जल्मभूमि नि बनी पाई कर्म भूमि मेर
यूँ अंख्यों का आसूं थे मिन नि समझा पाई
बोगी यखुली मा औ यखुली रुवेगैई

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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