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कबि त अपरा साथ मा


कबि त अपरा साथ मा

लेल्यूं दगड्या मिथे तुम भी
कबि त अपरा साथ मा
द्वि आखर लेखी लेला तुम भी
कबि त म्यार प्यार मा

बैठ्युं छों इनि तुमर सार मा
लग्युं छों हर दिन हर बार मा
खुद ऐजाली मेरी तुम थे कभी
खोजी ले ला तुम ये पहाड़ मा

आखर आखर टिप्दा रुं मि
ह्युंद बस्ग्याल और्री ये घाम मा
सुबेर दोफरी ब्योखन बीत ग्याई
भांडी खुद आंदी तुमरी अब रात मा

ब्याल त ये कन भी चली ग्याई
भौल सिन्कोली जाली परबात मा
बोलणु छों मि बस इतगा ही
यूँ ज्योंती जिंदगी कु कर्म कांड मा

लेल्यूं दगड्या मिथे तुम भी
कबि त अपरा साथ मा
द्वि आखर लेखी लेला तुम भी
कबि त म्यार प्यार मा

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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