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त ऐ बची जाली


त ऐ बची जाली

पैडि लियां रोज अपरी गढ़वाली
गढ़ भाषा च ये न्यारी पियारी
दोई आखर तुम रोजी पैडि लेला
बिंगी लेला बोली लेला त ऐ बची जाली

निथर ये भी बोगी जाली
पलायन दगडी भागी जाली
अपर नौनु नौनी दगडी रे
दगड्या तू बचाले त ऐ बची जाली

देक बुरु ना मन्या भैजियों
देक दुसरु क्वी भी नि आन हुलु
हुमन कन जै भी अब कन जी
कैकु सारू नि लाग्न जी त ऐ बची जाली

सोची ले तू अब समझी ले
अपरी माटी अपरी भाषा मा बोलिले
बचे बचे अपरुँ दगड रे भेजी
इतगा स काम तू कैजे त ऐ बची जाली

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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