छप छपि, दुक दुकी
छप छपि, दुक दुकी
क्ख्क लुकी हुली ये खुसी
झट दौड़ी कि ऐजा ये भूली
रौडी ले सुकी कुळैं पात्ति
कट कटी ,मूट मूटि
क्ख्क लुकी हुली ये हैंसी
कांडों कंडो मा हैंसदा फूल
तू झट देखि ऐजा ये भूली
रट रटी बक बकि
ये गीची किलै ना अब थकी
छँवि मा तू छँवि मिस्ल्दे
ऐकी बैठी जा बैंठलु पंक्ति
सज सजी रच रची
क्ख्क जाणी छे तू मेर भूली
रौडी रौडी कि हैंसि हैंसि की
बचै बचै कि कटै जाली ये जिंदगी
छप छपि, दुक दुकी ........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ