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मेरी बात माना नि माना


मेरी बात माना नि माना

मेरी बात माना नि माना
ब्वे ब्बों की बात जरूर माना जी
सरग बस्युं चा ऊँ खुठीयूं मां
ऊंन खुठीयूं मां रोज शीश न्ववा जी
मेरी बात माना नि माना ………

हुयं चलूं जनि छे ऊ द्वि चलूं चांटी
एक कठोर एक मयाल्दी छे काठी
अंख्यों भोरि राखि माया तेर बान
अब त छूछा तू ऊँ खुठों थे पछाण जी
मेरी बात माना नि माना ………

फूल जनि लगदा ऊ कांडा जनि चुब्दा
बाटा बाटा मां ऊ तै बान बटोई बणदा
ब्वे ब्बों ने तेर बान भोरियों संस्कृति भांडा
वै भांडा थे रे लाटा अब तू संम्भल लेदि
मेरी बात माना नि माना ………

जैंन सम्भली रे ये भांड आखिरी बगता
वैल ही पार पाई सुफल ज्योति जिंदगी कू कर्मा
फिर रै क्वी जाता पात रै क्वी भी धर्मा
कवि मनखी बुल्दु ब्वे ब्बों सेवा तेरु कर्मा
मेरी बात माना नि माना ………

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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