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पंद्रह बरस व्हैगैनी पंद्रह बरस जी




पंद्रह बरस व्हैगैनी पंद्रह बरस जी

पंद्रह बरस व्हैगैनी पंद्रह बरस जी
उत्तराखण्ड तै बनि कि ये ढुंगों गारों मा पंद्रह बरस जी

क्वी पोंछीगे लंदन त क्वी पोंछीगे अमेरिका जी
उत्तराखण्ड दिस मनिगे अब मेरा देश परदेशा मा जी

एक दिनों को सोर हुंयुँ ३६३ दिन सब बिसरी भूल जी
ये मेरो उत्तराखण्ड ते थे सब अपरा अब भूलि गयां जी

उत्तराखण्ड नाईट धरियुंच प्रवासी भै - बन्दों न अब सजी धजी जी
द्वि चार लस्का ढसक लगे की ऊँ पर दारू खूब अब चढ़ गै जी

कन इनि तुम थे अपरुँ की खुद लगनि मि अचरज मा पड़यूँ जी
उत्तराखण्ड शहीदों का सुप्निया किलै पड्यां अब भी अपुरा जी

पंद्रह बरस व्हैगैनी पंद्रह बरस जी
उत्तराखण्ड तै बनि कि ये ढुंगों गारों मा पंद्रह बरस जी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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