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मेरे पहाड़ पर कविता



मेरे पहाड़ पर कविता

मेरे पहाड़ पर कविता
बस इतना ही आता है मुझको
बस इतना ही भाता है मुझको
मेरे पहाड़ पर कविता

टूटी फूटी वो पंक्ति मेरी
वैसे ही सज रही वो सजनी मेरी
जंचती निरंतर संवारती वो
ना वो बदला ना बदलती वो
मेरे पहाड़ पर कविता

पहाड़ है पुकारता वो
शीर्ष से किसे वो निहारता वो
ओझल होते उसे चित्र दिखते
मन के पटल पर अंकित होते
मेरे पहाड़ पर कविता

पहाड़ से टूटे पत्थर गिर कर
गरमी में पहाड़ पर बैठे थे जो ऐंठकर
रेंग कर गिरते अब उभरकर
वर्षा में आँख के आँसूं बनकर
मेरे पहाड़ पर कविता

अजेय पहाड़ की ये कविता
पहाड़ की वो नारी सरिता
पहाड़ का दुख है अब भी उसका
टूटा क्यों ना विपत्तियों का दुखड़ा
मेरे पहाड़ पर कविता

जो शाश्वत प्रकृति है वो
उस में है ऐसा मेरा पहाड़
एक नदी लम्बी सी वो कविता
मेरी भाषा की है वो गणिता
मेरे पहाड़ पर कविता

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार
बालकृष्ण डी ध्यानी
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