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महफ़िलें बस दो पल की



महफ़िलें बस दो पल की

महफ़िलें बस दो पल की
पल में कहानी जो बन जाये वो कल की
उम्र कहता है की वो बस बहता पानी
कभी ठहरा हो तो हमसे वो अब कह दो अब जी
महफ़िलें बस दो पल की

मैंने भी बड़ी कोशिशें की थी
कभी अपने से यूँ अकेले अकेले में
बहुत उजाला भी हुआ था
उन काली रातों के घने अंधेरों में
महफ़िलें बस दो पल की

क्या ढूंढने चली जाती है वो फिर भी
अक्सर उन सुनी खामोश सड़कों में
नहीं खोज पाती है वो फिर भी वैसी नज़रें
जिसमें लिखा हो सब कुछ पता चल जाये वो बस पल में
महफ़िलें बस दो पल की

जरा सा धोखा है वो बस उन आँखों का
जो दिल दिमाग के ऊपर एक पर्दा डाल देता है
हकीकत की निगाहों का वो रास्ता उनसे काट देती है
फर्क महसूस ही नहीं होता वो हमको इतना मार देती है
महफ़िलें बस दो पल की

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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