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बदलते चेहरों में



बदलते चेहरों में

बदलते चेहरों में
एक चेहरा मेरा भी है
कैसे कर दूँ मैं खुद से मना
वो चेहरा मेरा ही है
बदलते चेहरों में ............

धुप थी वो बड़ी
छाया थी वो घनी
चेहरे पर घिरती झुर्रियों ने थी
वो बात मुझ से आके अब कही
बदलते चेहरों में ............

कैसे बदलते हैं ये चेहरे
लगा के खुद पर ही अब पहरे
बह जाती है वो धार फिर भी
ना बस में तेरे ना वो बस में मेरे
बदलते चेहरों में ............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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