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अपने को थाम लूँ



अपने को थाम लूँ

अपने को थाम लूँ
या फिर एक और जाम लूँ
देखों महफ़िल के इस मूड को
या अपनों के मुख देख छोड़ दूँ
अपने को थाम लूँ …

रंगीन दुनिया रंगीन सपने तेरे
रंगीन गलियों में सब तेरे अटके
सादगी से मेरे परहेज कर
मेरे पहाड़ी आज कहाँ भटके
अपने को थाम लूँ …

लिखने को तो बहुत कुछ था
पर पत्थरों पर ही मेरा दिल लगा
भुला था मैं यंहा कांटे भी मिलेंगे
पर ना भुला उनमें ही तू मेरे प्रेम के फूल खिलेंगे
अपने को थाम लूँ …

वो ऊँची उड़ान वाले पंछी मेरे
कभी आके तू तेरे टूटे हुये घोसले देख ले
फिर या तू अपने आँसूं अब से संभल ले
फिर ये मौका तुझे मिले ना मिले
अपने को थाम लूँ …

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
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में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार
बालकृष्ण डी ध्यानी
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