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पहाड़ों तुम हो मेरे



पहाड़ों तुम हो मेरे

पहाड़ों तुम हो मेरे , नजारों तुम हो मेरे
मेरी दिल की आँखों ने खींचे , हर एक वो चित्र तेरे

कभी सर्दी का था आलम , कभी बरखा ने की थी झम झम
वो पतझड़ तेरा मेरा मौसम , गर्मी में हुआ वो तीर्थों का संगम

हर एक वो कोना तेरा , खिला हुआ वो सोना तेरा
पहचान अगर ना पाया वो , उसे पड़ेगा अब उस सुख से वंचित होना

खेल ही खेल बिछाया कुदरत ने , कैसा ये मिलन रचाया कुदरत ने
इतनी दौलत देकर भी हमको , हम ने ही इस दौलत को ठुकराया

ये कैसी विडंबना है कैसा ये रोना है , दूर जाके ही क्यों दुःख होना है
रोना था तुझे तो यहीं ही रोना था , ये मोती तेरे मुझ से दूर नहीं खोना था

पहाड़ों तुम हो मेरे , नजारों तुम हो मेरे
मेरी दिल की आँखों ने खींचे , हर एक वो चित्र तेरे

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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