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अब की बार तुम नहीं हम बोलेंगे जी



अब की बार तुम नहीं हम बोलेंगे जी

अब की बार तुम नहीं हम बोलेंगे जी
अपने इस बंद मुख को अब हम खोलेंगे जी

अंधकार को दीप नहीं अब सूरज दिखाएंगे हम
पहाड़ों पे जुदाई के गीत नहीं मिलन के गीत गायेंगे हम

पत्थर पत्थर इकठा होकर फिर पहाड़ बन जायेंगे हम
एक नई विकास की गंगा इस पहाड़ पे ले आएंगे हम

पहले की तरह इन आँखों से आँसूं को ना व्यर्थ बहाएंगे हम
व्यर्थ में अपना जीवन ना फिजूल में गवाएंगे अब हम

माटी मेरी तेरा कर्ज अब चुकाएंगे हम
बहाकर अपना पसीना पुन: तुझे लहलहाएंगे हम

अब की बार तुम नहीं हम बोलेंगे जी
अपने इस बंद मुख को अब हम खोलेंगे जी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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