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जुदाई ही प्रेमलीला है



जुदाई ही प्रेमलीला है

ना वो कुछ कह सकी
ना मुझे कुछ याद आया

मजबूरी ने हमे आज
एकदूजे के सामने खड़ा पाया

प्रेम का अहसास था वो
जिसने हमसे ये करवाया

ना वो कुछ कह सकी ..............

तड़प वंहा भी थी मंजूर
अगन तो यहाँ भी थी

सुलगते दिल की ये तपिश
ना ये जमाना जान पाया

बहुत कशिश थी वक्त में
उसे ना सुलझा पाया

ना वो कुछ कह सकी ..............

बैठा हुआ हूँ आज
ये सूरज देख रहा हूँ

वो बैठी होगी कहीं
इस रात को निहार रही होगी

दो शरीरों का मेल नहीं
जुदाई में ही प्रेमलीला है

ना वो कुछ कह सकी ..............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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