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ऐसा उसे अपने में भर देना



ऐसा उसे अपने में भर देना

आपस में बातें करते हैं
आपस में लड़ते झगड़ते हैं
चार दिवारी में फंसे परिंदे
आखिर क्या कर सकते हैं

कैसे करूँ इनमें समझौता
खिड़की है लेकिन वो भी धोखा
इन मौकों पे झुंझलाए रहते हैं
अपने से वो तमतमाए रहते हैं

यूँ ही बस फुसफुसाते रहतें हैं
अपने से वो बड़बड़ाते रहतें हैं
खिजे खिजे से वो चारों कोने
एक दूजे से दुरी बनाये रखते हैं

किसको अब कहना कितना
किसको अब देना कितना
बीती बातों को लगाये बैठे हैं
टूटी ऐनक चारपाई बिछाये बैठे हैं

धूल मट्टी अब झाड़ देना
कूड़ा वो आपस में बाँट देना
त्योहर में रंग रोपण कर देते हैं
ऐसा उसे अपने में भर देना

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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