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पत्थरों को तराशने को



पत्थरों को तराशने को

पत्थरों को तराशने को
निकला हूँ खुद को आजमा ने को
नीले आकाश के छोर पे वो
एक राह है जो तेरी ओर चले
पत्थरों को तराशने को ………

कुछ ख़ास पास है वो
अब लेकिन क्यों बर्बाद है वो
उसे फिर आबाद करने के लिये
मेरी सांस क्यों उसकी ओर चले
पत्थरों को तराशने को ………

हर पत्थर अब बोलने लगा
अपने दिल का राज खोलने लगा
टटोल रहा है वो आज तेरे दिल को
देखना है उसे तू आज किस ओर चले
पत्थरों को तराशने को ………

हर ओर एक उदासी है
मातम की तरह छायी वो तन्हाई है
हर एक नजर ढूंढ़ती तुझको
आपस में बातें करती वो बस तेरी परछाई है
पत्थरों को तराशने को ………

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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