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वो मेरा इन्तजार



वो मेरा इन्तजार

करवा चौथ की रात
चांद को छलनी से देखने
खड़ी होगी छत पर वो बेकरार
पुरे दिन की होगी वो भूखी प्यासी
मेरी पत्नी कर रही होगी
वो मेरा इन्तजार
माथे पर सिंधुर लगाये
दुल्हन की तरह होगी वो बिलकुल तैयार
पल पल आज चला जाता होगा
ध्यान उसका उस काले गगन पर आज
किसी के कदमों की आहट सुन कर वो
दौड़ आती होगी आज उस दहलीज के पास
जिस दरवाजे से रोजाना
हमारा आना जाना होता रहता है
ना जाने आज उसका मन
क्यों बार बार रह रहकर बेचैन हो जाता है
ना तो मैं अब तक आया
ना ही वो निर्दयी चन्द्रमा काले गगन में आज
करवा चौथ की रात
चांद को छलनी से देखने
खड़ी होगी छत पर वो बेकरार
पुरे दिन की होगी वो भूखी प्यासी
मेरी पत्नी कर रही होगी
वो मेरा इन्तजार

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार
बालकृष्ण डी ध्यानी
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