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हर एक देख रहा है




हर एक देख रहा है

हर एक देख रहा है
आज क्यों मुझे पलट पलट के
१५ से १६ हुयी मैं आज बस उसकी नजर से

बाग़ की कली फूल बन गयी है अब
काटों का दामन पकड़ पकड़ के
माली परेशान हैं अब सारे चमन के

भौरों ने फीते कसने शुरू कर दिये
कभी इस ओर कभी उस ओर कसके
बड़े बेहूदगी बड़े बेशर्म से

राह पर चलना दुश्वार हुआ है ये ग़ालिब
कभी तेरी गजल सुन के कभी मेरी नजर पढ़ के
आ जाते हैं लोफ़र राह में मेरे अब भटक भटक के

हर एक देख रहा है
आज क्यों मुझे पलट पलट के
१५ से १६ हुयी मैं आज बस उसकी नजर से

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार
बालकृष्ण डी ध्यानी
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