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चलो आज अपने दिल से पूछे हम


चलो आज अपने दिल से पूछे हम

चलो आज अपने दिल से पूछे हम
क्या सही है क्या गलत है ये अपने दिल से बुझे हम

उम्मीद पड़ी मिलेगी मेरी उन राहों में अब तक गढ़ी
चलो आज अब तक उस गढ़ी उम्मीद को उखाड़ लाये हम

सुखी नदी मिलेगी वहां कुछ पड़े मिलेंगे बंजर खेत
दूर दूर तक ना होगा उनका कोई ना होगी अपनों से अब कोई भेंट

हर एक घर वहां खंडहर बन बन पुकार रहा होगा
सुखी घास जलते जंगल उन के सपनो को और जला रहा होगा

अकेला देखता खड़ा सदियों से वो विशालकाय पत्थर
ग्रेनेड के धमाकों से वो विशालकाय पत्थर अब टूटता और बिखरता होगा

कुछ अस्थियां मिलेंगी अब भी वंहा यंहा वहां पड़ी बही
अब गिद्धों का भी उस आसमान में आना जाना काम हो गया है

बूढी सांस बची है जो अब मरने को तैयार है
उस बूढ़े शरीर का ना कोई अब खरीदार शेष यंहा बचा है

काश तुम्हे कोई अपना इनमें अगर दिख जाये
तो सच होगा मेरा आईना अगर तुम से वो बोल जाये

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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