दोनों को कुछ कहना था
दोनों को कुछ कहना था
दोनों ही कुछ ना कह पाये जी
धरती और आकश को मिलना था
दोनों भी अब तक ना मिल पाये जी
दोनों को कुछ कहना था ................
एक उम्र पड़ी है वो रेल के जैसी
भागती रहती है दो पटरी पे यूँ ही
उम्मीद में है वो कोई आयेगा स्टेशन
वो पटरियां तब आपस में मिल जायेंगी
ऐसा मगर क्यों होता नहीं
दोनों को कुछ कहना था ................
एक दूसरे पर निर्भर सब है
साथ में चलते रहना ही वो सुख है
दुःख जब बाँट लोगे आधा आधा
समझ जाओगे तुम वो अपना वादा
दूर हैं पर पास सदा तुम्हारे
दोनों को कुछ कहना था ................
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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