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वो मोड़ फिर आ गया है



वो मोड़ फिर आ गया है

वो मोड़ फिर आ गया है
मेरी जिंदगी में फिर
घर अपने मैं लौट चलों
या चलों फिर किधर ओर मैं
वो मोड़ फिर आ गया है ..........

भटकता फिर रहा हूँ मैं
आज भी अपने में ही कहीं मैं
अंधेरा इतना घिरा था मुझ में
वो दूर रौशनी मुझे क्यों दिखी ही नहीं
वो मोड़ फिर आ गया है ..........

अपना था वो जो भी मेरा मुझे
अब तक वो मुझ से मिला नहीं
लोगो इतने मिले मुझे पर
मेरे साथ कोई क्यों चला नहीं
वो मोड़ फिर आ गया है ..........

आज फिर अपने किसी ने
मुझे दूर मोड़ से आवाज दी
उत्तर दूँ उसे या
फिर अनसुना कर आगे चलों
वो मोड़ फिर आ गया है ..........

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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