रूपांतर
कंठ से गाते हुये
वो गीत जो दिल में उतर जाता है
वो सुर
अनुभव से शब्दों और
शब्दों से जो आँखों में चमकते हैं
वो बुद्धि
वर्दी से निश्चय तक और
निश्चय से बॉडर पर खड़े रहते हैं
वो धैर्य
एकांत से उस शांति तक
उस शांति से जो आनंद मिलता है
वो आत्मविश्वास
अथक प्रयास से प्रगति और
प्रगति से जो ऐश्वर्य को खिलाती है
वो नम्रता
स्पर्श से आधार और
आधार से जो आँसूं टपकते हैं
वो माया
दिल से गालों पर और
गालों से जो स्मृति में घूमते हैं
वो प्रेम
चाहा से अपनेपन में और
अपनेपन से शब्दों में उभरते हैं
वो विशवास
यादों से कृति में और
कृति से समाधान में जो दिखता है
वो अनुभूति
मन से ओठों पर और
ओठों से फिर मन में जाते हैं
वो यादें
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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