कभी तो आजा तू अपने उत्तराखंड में
कभी तो आजा तू अपने उत्तराखंड में
अपने घर अपने द्वार अपने गाँव में
प्रवासी बन कब तक तू भटकेगा
बाँकपन तेरा बचपन से कब तक अटकेगा
पुकारता तो होगा वो तुझे कभी अकेले में
इस दिल की बातों से तू कब तक मुकरेगा
छल ना तू ऐसे ना तू अपने को ऐसे दुःख दे
ये तेरी प्यारी सी सूरत कभी तो मेरी ओर तू कर दे
इतिहास के पन्नों को समझना तेरा अब भी बाकी है
अपने पुरखों को परखना तेरा अब भी बाकी है
तुतली बोली में तेरे गाये गढ़वाली गीत अब भी बाकी है
उन यादों की दीवारों खींची तूने वो रेखा अब भी बाकी है
चल मुझे नहीं तो अपने को देखने को आजा
खोया है तू कब से अपने में उसे खोजने तो अपने पहाड़ आजा
कभी तो आजा तू अपने उत्तराखंड में
अपने घर अपने द्वार अपने गाँव में
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ