बंद दीवारों से बातें कर लें हम
बंद दीवारों से बातें कर लें हम
चलो आज अपने से यूँ मुलाकातें कर लें हम
बैठे बैठे उस खिड़की पर आज हम दोनों ऐसे
आकाश में उड़ते वो यादों के बादल देख लें
बंद दीवारों से बातें कर लें हम ..............
टूटी पड़ी है वो पर कमजोर नहीं वो
बातें हैं वो बस दिल की कुछ और नहीं वो
आ चल जरा दो घड़ी बैठ जायें उस कोने में
सुकून मिलेगा तुझे उसमे ऐसे खोने में
बंद दीवारों से बातें कर लें हम ..............
बंद होगा वो ताला पता नहीं कितने सदियों से
चलो उस ताले की चाबी हम आज जा के खोज लें
कोई तो आयेगा उसको भी तो ये इन्तजार होगा
चलो आज हम जाकर उसका वो इन्तजार पूरा कर दें
बंद दीवारों से बातें कर लें हम ..............
बंद दीवार तेरी कुछ ना कुछ तो तुझे से भी कहती होगी
तेरी खिड़की तेरे दरवाजे से वो हवा जब टकराती होगी
कुछ ना कुछ सन्देश तू भी तो तब टटोलता होगा
जब इस शरीर रूपी ढांचे में तू खुद को जब खोजता होगा
बंद दीवारों से बातें कर लें हम ..............
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
1 टिप्पणियाँ
मनोभावों की सुन्दर प्रस्तुति
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