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बरसों से बंद चिट्ठियों ने


बरसों से बंद चिट्ठियों ने

बरसों से बंद चिट्ठियों ने
आज फिर से आवाज की है ..... २
हवा के झोकों ने
आज फिर से दिल में सर-सरहट की है ... २
बरसों से बंद चिट्ठियों ने
आज फिर से आवाज की है ..... २

वो मौसम वो जवानी का आलम
लिखते थे जिन अहसासों को रोज पन्नों पर हम तुम
वो फिर आज खट-खट करने लगे हैं
बंद संदूक से वो खुद ब खुद अब निकलने लगे
बरसों से बंद चिट्ठियों ने
आज फिर से आवाज की है ..... २

फिर वो अधूरा प्रेम बोलने लगा है
आँखों से फिर उतरने लगा है
एक एक बात कही तुम्हारी याद आने लगी है
वो मोड़ वो पेड़ वो समंदर फिर बुलाने लगे है
बरसों से बंद चिट्ठियों ने
आज फिर से आवाज की है ..... २

कांपते हाथों को क्या अब सहारा मिलेगा
बूढी आँखों को वो फिर किनारा मिलेगा
यादों के नम पन्नो पर अब भी
मैंने लिखा था जो तुम्हारा नाम वो अब भी मिलेगा
बरसों से बंद चिट्ठियों ने
आज फिर से आवाज की है ..... २

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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1 टिप्पणियाँ

  1. चिट्ठी जब भी खुलती हैं यादों का कारवां साथ ले आती हैं। .
    बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना

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