आज से फिर शुरुवात कर रहा हूँ
आज से फिर शुरुवात कर रहा हूँ
तुम मेरे ऐसे ना होने को मेरा अंत ना समझ लेना
जिसे देख के कभी लिख देता हूँ मैं अपने को
उस चेहरे को मेरे सामने से लुप्त ना करना
तकलीफें हैं तो वो जरूर आयेंगी
उसे देख कर तुम अपना दरवाजा ना बंद कर लेना
कोई बैठा उस दरवाजे पर तुम्हारा अब भी मिलेगा
बस देखने का वो फर्क था उस फर्क को तुम मिटा देना
कुछ नहीं रहता है यंहा बस वो आँखों का एक धोखा है
इस मेरे बनाये धोखे में देख तुम ना कभी आ जाना
तुम्हारे लिये ये रातें मुझे लिखने को मजबूर करती हैं
वैसे ही ये दिन तुम्हे मेरे लिखे पढ़ने को मजबूर करते होंगे
आज से फिर शुरुवात कर रहा हूँ
तुम मेरे ऐसे ना होने को मेरा अंत ना समझ लेना ...............
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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