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फिर भी मैं अपना पहला कदम खोजता हूँ


फिर भी मैं अपना पहला कदम खोजता हूँ

में अपने खींची रेखाओं के पीछे भागता रहता हूँ
कभी उन्हें खरोंचता कभी मिटाता रहता हूँ

बहुत कोशिश करता हूँ उस अन्धकार को प्रकाश दिखाने की
पर हर बार उसके घेरे में मैंने खुद को जकड़ा पाता हूँ

कभी सांस अटक जाती है अपने आप में खुद के भीतर ही
बड़ी परेशानी के बाद उसमें से मैं निकल पाता हूँ

कभी सोचता हूँ क्यों उन रेखाओं को मैं खरोंचता मिटाता हूँ
ऐ सवाल मैं रोज अपने आप से एक बार तो कह जाता हूँ

फिर भी अपने को उसका एक बार भी उत्तर नहीं दे पाता हूँ
दो की दुनिया हजार गम फिर भी मैं अपना पहला कदम खोजता हूँ

में अपने खींची रेखाओं के पीछे भागता रहता हूँ
कभी उन्हें खरोंचता कभी मिटाता रहता हूँ

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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