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सब तो बिका हुआ है



सब तो बिका हुआ है

सब तो बिका हुआ है
फिर भी कोई ना कोई खरीदार खड़ा हुआ है

जर बेची जमीन भी बेचीं ये ईमान भी बिका हुआ है
हर एक पर वो रूपये का फीता चढ़ा हुआ है

मुस्कराना बिका हुआ आंसू बहाना भी बिका पड़ा है
हर एक चेहरे की वो शिकन में वो तमगा लगा हुआ है

दाम अपना लगा ले बीच बाजार माल बिक वाले
वरना बिना दाम रह जायेगा मुफ्त ही दुसरा सेवा पायेगा

लकड़ी ने भी हर वक्त ठीक ठाक अपना दाम वसूला है
बचपन से ले बुढा पे के अंत तक अपना हिसाब वसूला

कह ना बस इतना ये जग है बस एक लुभावन सपना
किश्तें चुकाते जाओ और उसे बिकते बिका ते जाओ

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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