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अपने हात में क्या रह जाता है


अपने हात में क्या रह जाता है

अपने हात में क्या रह जाता है
बस वो तो खाली रह जाता है
सुख की खोज में ये अब जीवन
अचानक समाप्त हो जाता है

नश्वर आत्म से प्रेम ना करने के बदले
नाश होने वाली चीजों से वो अब प्रेम करता है
असीम सुख शांति जंहा मिलने वाली होती है
इस जीवन में आते ही उस द्वार को बंद कर देता है

भागता रहता है उसका वो मन दिन रात
एक पल भी ना सुख चैन तब उसको मिलता है
असीम भौतिक दौलत कमा कर वो प्राणी
बता दो एक दिन भी सुख की नींद सो पाता है

अपनी आत्म से प्रेम करो वो तेर अस्तित्व है
वो ही रहा दिखायेगी तुझको उसको प्रकाशमान करो
सही अर्थ तुझे जीवन का वो तब तुझे दिखायेगी
भौतिक सुखों त्यागना वो परम आनंद दिलाएगी

अपने हात में क्या रह जाता है
बस वो तो खाली रह जाता है

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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