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टूटकर बिखरना आता है


टूटकर बिखरना आता है

टूटकर बिखरना आता है
हमको तो बस अब ऐसे ही जीना आता है

बूदें बरसातों की गिरती है धरा पे जैसे
चूमती है इस जमीं को अपने अधरों में वो जैसे
आलिंगन लेती है वो लहक तब आ के मचल जाती है
हमको भी वैसे ही देखो अब मचलना आता है
टूटकर बिखरना आता है
हमको तो बस अब ऐसे ही जीना आता है

खामोश जब रहता है समा मदहोश हवा कर जाती है
मन के किसी कोने को वो चुपचाप सी छेड़ जाती है
पैरों की आहट किये बिना इस दिल में वो बस जाती है
रोक कर रखे थे जो आँखों में मोती वो एक एक कर टूट जाते हैं
टूटकर बिखरना आता है
हमको तो बस अब ऐसे ही जीना आता है

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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