खो गये हैं सब कहीं
खो गये हैं सब कहीं
अपने अपने राग में
है वही है ये जमीं है वही ये आसमान
खो गये हैं सब कहीं .....
खोजते हैं क्या वो अब
अपने इस आस पास में
मिल जायेगा उसको वो इस झूठे एतबार में
खो गये हैं सब कहीं .....
खोज ना सका खुद को वो
भ्रम से भरे इस झूठे कारोबार में
खो गया ऐसा वो उबरना वो दूजी बार में
खो गये हैं सब कहीं .....
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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