कविता प्रेम की
कविता प्रेम की
निश्छल स्नेह की
वो कविता प्रेम की
वो मेरे प्रेम की
बहती जाती है अविरल
वो कल कल हर पल
कविता प्रेम की
वो मेरे प्रेम की
ना संकोच है
ना संदेह है ना कोई भेद है
कविता प्रेम की
वो मेरे प्रेम की
है संगम ना विछेद कोई
अनंत है वो अविनाशी है
कविता प्रेम की
वो मेरे प्रेम की
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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