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बहुत अँधेरा है समाज के अंदर


बहुत अँधेरा है समाज के अंदर

बहुत अँधेरा है समाज के अंदर
कोई तो आ के अब दीप जला दे
एक हुये थे कभी कई सालों पहले हम
फिर वैसे ही कोई आकर ये बुझी मशाल जला दे
बहुत अँधेरा है समाज के अंदर ...........

घर छूटा है गांव , पहाड़ है छूटा मेरा
कोई आओ हमे इस छूटने से हम को बचाने
भरोसा किया हमने अपनों पर अब तक
अपनों ने ही हमे अब तक लूटा है
बहुत अँधेरा है समाज के अंदर ...........

कोई तो जगमग ज्योति होगी कहीं पर
जो हमें प्रकाशित करने को होगी बेकरार
ऐसी ललक तू जगा दे आकर हम में
हम भी हो जायें इस धरा पर लौटने बेकरार
बहुत अँधेरा है समाज के अंदर ...........

अपने से पूछ अपने को जानो तुम
क्यों कर रहे हो तुम किस का इन्तजार
वो दीपक तुम हो वो मशाल तुम ही हो
बस अब प्रकाशमान होने को हो जाओ तयार
बहुत अँधेरा है समाज के अंदर ...........

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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