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बस वो ख़याल मेरा था


बस वो ख़याल मेरा था

बस वो ख़याल मेरा था
पर उसका जवाब मगर तुमने दिया
एक पत्थर का एक टुकड़ा था मैं
पर उसको आकार तुमने दिया
बस वो ख़याल मेरा था ....

अकेले में लिखी थी जो मैंने
वो रचना तुम्हारे ही भीड़ ने दी थी
कागज पर जो उतारी थी मैंने
पर उसे साकार तुमने किया
बस वो ख़याल मेरा था ....

मै तू एक पहाड़ों की बहती नदी हूँ
आकर बाँध तुमने मुझ पर लगा दिया
सोच भी ना थोड़ ना समझा आपने
यूँ मुझ पर आपने अपना अधिकार जमा लिया
बस वो ख़याल मेरा था ....
.
बस वो ख़याल मेरा था ...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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