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अपनी एक कविता


अपनी एक कविता

हर पल मन में कल कल वो बहे , जैसे बहे वो सरिता
तो आज मैंने भी लिखी डाली है देखो अपनी एक कविता

कुछ अक्षर उभरे थे मन में मन के इस शब्द पटल में
उनको ही अंकित कर डाला उन भावों को मैंने समेट डाला

अक्सर वो बात करती थी मुझसे और साथ रहती थी मेरे
ले कलम का सहरा आज मैंने उन्हें इस कोरे पन्ने में उतरा

पहली बार अहसास किया उसने आज एक नये सृजन का
मन अपना तृप्त किया उसने आज अपने को अर्पण किया

हर पल मन में कल कल वो बहे , जैसे बहे वो सरिता .....

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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