अपने को खोकर मैं इस जहाँ को पाने चला हूँ ........ रोको ना मुझे
अपने को खोकर मैं इस जहाँ को पाने चला हूँ ........ रोको ना मुझे
इस ही फितूर में मैं अब अपनी जिंदगी जलाने चला हूँ
अपने सपनो की एक नई दुनिया मैं अब अपनों से दूर बसाने चला हूँ
अपनों की बसी बसाई दुनिया को फिर मैं उजाड़ा के चला हूँ
अपनों की बातों को अनसुना कर अब दुनिया की सुनने चला हूँ
रोते बिलखते अपनो की आँखों को और मैं भीगा के चला हूँ
छोड़कर अपनों का रास्ता नये राह पर अपने क़दमों को बढ़ने चला हूँ
किसी को पीछे छोड़कर आज मैं किसी और का साथ निभाने चला हूँ
फितूर के इस घोसले के लिये मैं घर अपना जला के चला हूँ
खुद अपनी और अपनों की अर्थी मैं अपने कन्धों पर उठकर चला हूँ
अपने को खोकर मैं इस जहाँ को पाने चला हूँ ........ रोको ना मुझे
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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