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सुन बहन उमा !




सुन बहन उमा !

तू न कहती थी कि तुझसे प्यार कम है
चल तुझे बता दूँ कि ये बस तेरा भरम है
जितनी चाहत मुझे भूली ...आयुष ,जाग्रति से हैं
प्यार कि माला में तू भी अहम मोती सी हैं

तुझे पता है
मैंने तेरे लिए आज दुआ की है
पर मत पूछ कि आखिर क्या-क्या की है
कोई इक हो तो बताऊँ भी
कैसे पूरी पोथी खोल कर दिखाऊँ अभी

सुना है मैंने
बता देने से दुआ कबूल नहीं होगी
अगर ऐसा है हमसे भी ये भूल नहीं होगी
जब दुआ पूरी होगी कह दूंगा
ये वही दुआ थी जो रंग लायी है
इबादत के पौधे में कली खिल आई हैं

अब बड़ा हूँ तो फर्ज मैं निभाऊं गा
शाम को साथ अपने केक भी ले आऊंगा
तू भी जल्दी आना देर मत करना उमा
वरना रूठ कर मैं इस बार भी सो जाऊँगा


भाई बालकृष्ण डी. ध्यानी
बालकृष्ण डी ध्यानी
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