गढ़वाली भाषा च मेरी बोली नि च
गढ़वाली भाषा च मेरी बोली नि च
ये भुल्हा मेरो भूली मेरी ईंथे घौर घौर सिंच
गढ़वाली भाषा च मेरी बोली नि च
कदगा रसैलि च ये कदगा मयली बांद
बडुली लगदा तिस बुझि खुठों लागि कुदग्लि परज
गढ़वाली भाषा च मेरी बोली नि च
मुखमा मिसरी घुलै जनवहैल पिंगली जलैबि
राग स्वर व्यंजन अलकरों दगडी वा च नटेलि
गढ़वाली भाषा च मेरी बोली नि च
गढ़ को ऊ स्वास च मेरो वा मेर जियु परण
विंका बिना दीदी भुल्यूँ हमरी कया पछाण
गढ़वाली भाषा च मेरी बोली नि च
हिमाल का हिंवाल च वा मेरी शीर्ष को मान
मेरा उत्तराखंड भूमि मा मेरा इष्टों का वा समान
गढ़वाली भाषा च मेरी बोली नि च
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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