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अब मेरो पहाड़ बोलण लग्युं रे



अब मेरो पहाड़ बोलण लग्युं रे

मिथे मेरो पहाड़ बोलण लग्युं रे
देक दीदा ऊ मिथे रे धैय लगाणु लग्युं रे ... २
मिथे मेरो पहाड़ बोलण लग्युं रे ......

हैरी भैरी दांडी कंठी
ऊ बिगरेली ह्युं कि चलों-चांठी
ढुंगा गार ऊ देक हाक देंण लग्यां रे
मिथे ऊ मेरा अपरा पास बोलण लग्यां रे
मिथे मेरो पहाड़ बोलण लग्युं रे ......

कंडो धारों मा ऊ बिज्यां उकाळो
विपदा पीड़ा खैरी को सदनी मेरो पहाड़ो
हर्ची गे मेरो बालपन फिर मिथे देख्णु लग्युं रे
देक मेर सुकी तांसी मां ऊ बडुळि लगाणु लग्युं रे
मिथे मेरो पहाड़ बोलण लग्युं रे ......

मि त बल अब इतगा ही जण दू
वै दस डंडा परी छ मेरो गौं मुल्को
वै का ही बणा अटक्यूँ छ ये मेरो जियू परणु रे
अणु मि अणु दीदा जरा ठैर देक तैथे
मिथे मेरो पहाड़ बोलण लग्युं रे ......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार
बालकृष्ण डी ध्यानी
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