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जीमो की बस चले हिले डुले पहाड़ों मां


जीमो की बस चले हिले डुले पहाड़ों मां

जीमो की बस चले हिले डुले पहाड़ों मां
धका धक ई जीकोडी करण लगे किलै दिल्मा
एक बी टका निच मेरा सुलार का किसा मा
झक मक झक मक किलै कारण लगे वा मेरा आंखां मा
जीमो की बस चले हिले डुले पहाड़ों मां .........

यात्री छों सीट मां सिरदा ही अबै बिछे जांदो
जणू छों जणू छों तै छोड़ी की अब कख जणू
आंख्युं मा छन दड़याँ वा मेरा हजार सुप्निया
टूटी टूटी उजड़ी कि सबी का सब यखी छन पौड्यां
जीमो की बस चले हिले डुले पहाड़ों मां .........

और्री लगा देंदी जोर दीदी ज़रा हाक दे देंदी वैथे
कख ऊ जांदू जो परती की तेरा आँखा मां ऊ जबै देक देन्दु
न ईन धक धका फिर ईं जीमो की बस अब हुँदा
जबै सब दीदा भुला अपरा पहाड़े मा ही राजी कुसी हुँदा
जीमो की बस चले हिले डुले पहाड़ों मां .........

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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