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फिर तिल जांण च कख


फिर तिल जांण च कख

और्री कदगा चैनू तैथे तू मिथे इन बता
तेर मरजी कया च तू इन मेमा जता

इन रौंतेली धरती मिन तैथे दिंई
ईन बिगरेला पहाड़ मिल तै बान धर्याँ
गंगा बोई भी सरग बठै ऐेई यख
बद्री केदार नर नरयाण सब बैठ्या छन यख

और्री कदगा तिर्प्त तैथ करों तू मिथे बता
अपरि जिकुड़ी को उमाल भैर कडा तू मिसै बचा

कदगा जंगलों का बन मिल तै बान धर्याँ
ऐ फूलों की घाटी बी मिल पसारी यख
कदगा दिव्य आर्युवेद दवाई मिल लगाई च यख
भला सदा मनखी को ये मेरो उत्तराखंड

और्री कदगा तै बतओं तू खुद ही अनुभव कैरी
अपरि मनखी थे शुद कैरी तू अपरि आँखि खोली जरा

दिख जालो तैथे जो तिथे चैनू च यख
दौड़ी कि भेंटि ओलों तेथे जब मिथे धैए लाग लेलो तू जब
अपरि आप समजी जैलो जब तै बान कया धर्युं च यख
फिर तू सदनि यखी रै जालू फिर तिल जांण च कख

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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