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कुछ तो बात अलग है


कुछ तो बात अलग है

कुछ तो बात अलग है मैं और मेरे पहाड़ों में
बस इतनी सी मेरी तलब है सब बसे मेरे पहाड़ों में

बस मेरा पहाड़ बसा है मेरे दिल में और मैं पहाड़ी हूँ
ना गढ़वाली ना मैं जौनसारी मैं बस उत्तराखण्डी हूँ

ना कोई कुछ मुझसे अलग है ना कोई है मुझसे है जुदा
मेरे घर आंगन और मुझ में बस बसता है मेरा खुदा

सुखी रोटी प्याज खा कर मैं आप से एक गुजारिश करूँ
ममता का सुख मिलेगा यंहा और क्या मैं तुझ से और कहूं

छोड़ के मुझे और अपने को तो तू अब चला है कहाँ
देख ना आगे तो इतना दूर ना जा जो छूट जाये तेरा प्यारा जंहा

अपना अस्तित्व खोजने को मैं तेरा अस्तित्व मिटाता चला
इतना प्यारा है तो मैं तुझे भूलता रहा और तो मुझे बुलाता रहा

कुछ तो बात अलग है मैं और मेरे पहाड़ों के गलियारों में
जान जाता है जो इसे फिर वो जाता नहीं इसके ठिकानों से

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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