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रूठा है वो


रूठा है वो

तुम जैसा छोड़ गयी थी
वैसा ही है अपना वो घर
ना जाने क्या बात हुयी है उसके साथ
बहुत चुप रहता है वो आज कल

ना कोई आवाज है आती
ना कोई इस ओर अब है आता
टूट चुका उसका वो सबसे रिश्ता
तेरे शिवाय उसे कोई ना अब भाता

गुमसुम है गुम वो अपने में ही
खाता है क्या ग़म उसे क्यों अब तक पता नहीं
अब भी इन्तजार है उसको तेरा बस तेरा
कितने दिन रातों से वो सोया नहीं

रूठा है वो किस बात पर मेरे
मुझको आज तक उस बात का क्यों पता नहीं
मिनतें की गिड़गिड़ाया अकेले में बहुत
उसके सम्मुख मैं क्यों बोल पाया नहीं

बिलकुल वैसा ही बिलकुल वैसा अब भी वो
पर थोड़ा सा मैं बदल गया हूँ पूरा बदल गया हूँ
अब तो मुझे उसकी सूद रहती ही नहीं
ना जाने तुम्हारे यादों में मैं किस कदर खो गया हूँ

तुम जैसा छोड़ गयी थी
वैसा ही है अपना वो घर
ना जाने क्या बात हुयी है उसके साथ
बहुत चुप रहता है वो आज कल

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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