अब की बरसात में
बस अपने थे वो
जो सपने थे वो
देख ना पाये हम उन्हें साथ में
अब की बरसात में
क्या बात हुयी
ये भी ना जान पाये हम
अपनों के हाथों की अग्नि को भी
ना पार पाये हम
अब की बरसात में
क्या रात थी वो
क्या दिन था वो
ना जाने क्या वो बात थी
वो भी बोल ना पाये हम
अब की बरसात में
रोना ना ना कुछ खोना
जीवन तो एक सपन सलोना
उस सपन सलोने में
इस बार ना झूल पाये हम
अब की बरसात में
जागे हैं या सोये हम
हलचल हुयी सब खोये हम
अब ना हम मिल पाएंगे तुम से
इस अगली बरसात में
अब की बरसात में
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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