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किलै किलै मिथे तू.


किलै किलै मिथे तू.

किलै किलै मिथे तू
अब अपरि लगणि छे
जदगा बारी मि हेरौं ति थे
वदग और्री मि ति थे हेरनू छों

अध्याँरोमा मा रात बगत
अब गैणा पिछने रिटनु छों
जून की जुन्याली मा
युँ उजळू की बुकि लेनु छों

किलै किलै मिथे तू
अब अपरि लगणि छे

यकलु छे ऊ ठाव मेरो
तू दगड्या बणी की मेरो ऐजै
अदा रात को यु सुपनिया मेरो
सिरना मा ऐकि तू मेरो बुनिजै

सुबेर को .... सुबेर को
जबै जबै ऐ उषा आणि छे
मेरो मनको झझल्कोमा
पैल झल्की बस तू छे

किलै किलै मिथे तू

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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